शेयर क्या है? Share Kya Hota Hai

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आज हम आपको Share Kya Hota Hai, इसे कैसे खरीदते और बेचते हैं इसकी जानकारी देंगे।

तो आइए हम आपको बताते हैं शेयर क्या है?

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Share Kya Hai?

किसी चीज में हिस्सा या किसी व्यवसाय में हिस्सा या किसी जमीन जायदाद में हिस्सा होना शेयर कहलाता है। उदाहरण के तौर पर जब हम किसी कंपनी के share खरीदते हैं तो इसका मतलब है कि हमने उस कंपनी का कुछ हिस्सा खरीद लिया है।

मतलब कि उस कंपनी का कुछ हिस्सा हमारे पास है। जैसे हमने रिलायंस कंपनी के शेयर खरीदे हैं तो इसका मतलब यह है कि अब हमारी रिलायंस कंपनी में हिस्सेदारी है। इसे हम पार्टनरशिप भी कह सकते हैं। इसका मतलब यह है कि अगर कंपनी को लाभ होगा तो हमें भी लाभ होगा। अगर कंपनी को नुकसान होगा तो हमारा नुकसान होना भी लाजमी है।

अगर आप किसी भी कंपनी के शेयर खरीदते हैं तो उन शेयरों के अनुपात के अनुसार आप कंपनी के हिस्सेदार बन जाते हैं।

किसी नई कंपनी की शुरुआत करने के लिए या किसी वर्तमान कंपनी के विस्तार के लिए हमें अत्यधिक पूंजी निवेश की आवश्यकता होती है। किसी भी व्यक्ति के लिए इतनी अधिक पूंजी निवेश करना कठिन होता है। इसलिए कुल पूंजी निवेश को समान इकाइयों में बांट दिया जाता है। जिन्हें शेयर कहते है और इन्हें शेयर मार्केट में बेच दिया जाता है।

सभी निवेशक अपनी क्षमता के अनुसार शेयर खरीदते हैं और कंपनी में हिस्सेदार हो जाते हैं। कंपनी में उनकी हिस्सेदारी उनके द्वारा खरीदे गए शेयर की संख्या पर निर्भर करती है।

उदाहरण के तौर पर मान लीजिए कि कोई पूंजीपति हैं जिनकी कंपनी की वैल्यू एक करोड़ रुपए है और इन्हें अपनी कंपनी के विस्तार के लिए 50 लाख रुपए की आवश्यकता है। 50 लाख रुपए के पूंजी निवेश की आवश्यकता को पूरा करने के लिए वह पूंजीपति 50,000 शेयर, 100 रुपए फेस वैल्यू के साथ शेयर मार्केट में जारी कर देता है।

लोगों द्वारा इन शेयर्स को खरीदे जाने पर उस पूंजीपति को कंपनी के विस्तार के लिए 50 लाख रुपए मिल जाते हैं और शेयर होल्डर्स को अपने खरीदे गए शेयरों की संख्या के आधार पर हिस्सेदारी प्राप्त हो जाती है।

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शेयर कितने प्रकार के होते हैं? - Share Kitne Prakar Ke Hote Hai?

किसी भी कंपनी के शेयर दो प्रकार के होते हैं:

  • इक्विटी शेयर (Equity Share): इक्विटी शेयर सामान्य शेयर होते हैं। इक्विटी शेयर का उपयोग एक कंपनी द्वारा पूंजी निवेश की आवश्यकता को पूर्ण करने के लिए किया जाता है। इक्विटी शेयर को प्रेफरेंस शेयर में परिवर्तित नहीं किया जा सकता।
  • प्रेफरेंस शेयर (Preference Share): प्रेफरेंस शेयर उन शेयर को कहा जाता है जिन्हें इक्विटी शेयर से अधिक तरजीह प्राप्त होती है। प्रेफरेंस शेयर को इक्विटी शेयर में भी परिवर्तित किया जा सकता है। प्रेफरेंस शेयर को निम्न तरीकों से वर्गीकृत किया जा सकता है, जो कि इस प्रकार है:
    • क्यूमुलेटिव प्रिफरेंस शेयर (संचयी प्राथमिकता शेयर): यदि किसी वित्तीय वर्ष में कोई कंपनी लाभ नहीं कमाती है या लाभांश घोषित नहीं करती है और वह कंपनी अगले वित्तीय वर्ष में लाभ कमाती है तो इन परिस्थितियों में निवेशक दोनों वित्तीय वर्षों के लाभांश के लिए दावा कर सकता है।
    • नॉन-क्यूमुलेटिव प्रिफरेंस शेयर (गैर-संचयी प्राथमिकता शेयर): यदि किसी वित्तीय वर्ष में कोई कंपनी लाभ नहीं कमाती है या लाभांश घोषित नहीं करती है और वह कंपनी अगले वित्तीय वर्ष में लाभ कमाती है तो इन परिस्थितियों में निवेशक दोनों वित्तीय वर्षों के लाभांश के लिए दावा नहीं कर सकता है।
    • कन्वर्टिबल प्रेफरेंस शेयर (परिवर्तनीय वरीयता शेयर): कन्वर्टिबल प्रेफरेंस शेयर, वे शेयर होते हैं जो कुछ निश्चित अवधि के बाद इक्विटी शेयर में बदलने की पहले से ही निर्धारित शर्तों पर जारी किए जाते हैं।
    • नॉन-कन्वर्टिबल प्रेफरेंस शेयर (गैर-परिवर्तनीय वरीयता शेयर): नॉन कन्वर्टिबल प्रेफरेंस शेयर, वे शेयर होते हैं जो इक्विटी शेयर में परिवर्तित नहीं किए जा सकते हैं।
    • रिडीमेबल प्रेफरेंस शेयर (प्रतिदेय वरीयता शेयर): रिडीमेबल प्रेफरेंस शेयर के शेयरधारकों को उनकी पूंजी लाभांश सहित एक निश्चित अवधि के बाद लौटा दी जाती है। रिडीमेबल प्रेफरेंस शेयर धारक थोड़े समय के लिए ही कंपनी के साथ जुड़े होते हैं।
    • नॉन-रिडीमेबल प्रेफरेंस शेयर (गैर-प्रतिदेय वरीयता शेयर):नॉन-रिडीमेबल प्रेफरेंस शेयर में पूजी को लौटाने की कोई निश्चित अवधि नहीं होती है, परंतु कंपनी के दिवालिया होने की स्थिति में कंपनी को शेयर होल्डर की पूंजी का भुगतान करना होता है।
    • पार्टिसिपेटिंग प्रेफरेंस शेयर (सहभागी वरीयता शेयर): पार्टिसिपेटिंग प्रेफरेंस शेयर के शेयर होल्डर को, प्रेफरेंस शेयर होल्डर और इक्विटी शेयर होल्डर को डिविडेंड प्राप्त होने के बाद भी लाभ प्राप्त करने की अनुमति होती है।
    • नॉन-पार्टिसिपेटिंग प्रेफरेंस शेयर (गैर-सहभागी वरीयता शेयर): नॉन-पार्टिसिपेटिंग प्रेफरेंस शेयर के शेयर होल्डर को केवल पूर्व निर्धारित लाभ प्राप्त करने की अनुमति होती है।

शेयर कैसे खरीदे? - How to Buy Share?

शेयरों के लेनदेन के लिए भारत में दो महत्वपूर्ण स्टॉक एक्सचेंज माने जाते हैं:

  • नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE))
  • बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE)

शेयर हम 2 तरीकों से खरीद सकते हैं: ऑनलाइन और ऑफलाइन।

ऑफलाइन शेयर खरीदने की प्रक्रिया

ऑफलाइन शेयर खरीदने के लिए ट्रेडर को अपनी पूरी जानकारी को ब्रोकर के साथ मोबाइल पर बतानी पड़ती है। अगर ब्रोकर के साथ मोबाइल पर बात ना हो तो उससे ट्रेडर को ब्रोकर के दफ्तर में जाना पड़ता है। ट्रेडर को अपनी जानकारी में शेयरों का नाम शेयरों की संख्या और शेयरों के मूल्य इत्यादि बताना जरूरी होता है। यह सारी जानकारी लेकर ब्रोकर निवेशकों की तरफ से ऑर्डर देता है।

ऑफलाइन प्रक्रिया में ब्रोकर व्यापारियों से ज्यादा पैसे लेते हैं ऑनलाइन प्रक्रिया की तुलना में।

ऑनलाइन शेयर खरीदने की प्रक्रिया

ऑनलाइन प्रक्रिया आने से पहले हर एक ट्रेडर शेयर खरीदने के लिए सबसे पहले दलाल को बुलाता था और फिर दलाल क्लर्क को बुलाता था और इसके बाद क्लर्क आर्डर को एक फ्लोर दलाल के पास भेज देता था और फिर जाकर फ्लोर दलाल आर्डर को निष्पादित करता था।

फिर ऑर्डर क्लर्क को भेजता था और अंत इसे दलाल के पास भेज दिया जाता था। इसके बाद दलाल एक ट्रेडर के शेयरों के ऑर्डर की प्रक्रिया खत्म करता था। पर ऑनलाइन प्रक्रिया आने के बाद ट्रेडर के समय की बचत काफी हुई है।

हर एक ट्रेडर के लिए ऑनलाइन शेयर खरीदना बहुत ही ज्यादा आसान हो गया है। पैसों का लेनदेन, आर्डर देना और शेयरों को खरीदना और बेचना यह सारा काम हर एक ट्रेडर आज के समय में एक कंप्यूटर और मोबाइल की सहायता से भी कर सकता है।

इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी क्षेत्र में कई ऐसी एप्लीकेशन उपलब्ध हैं जहां पर कोई भी ट्रेडर ब्रोकरों के साथ अपना खाता खोल सकता है और मोबाइल फोन, टेबलेट, लैपटॉप के माध्यम से आसानी से ट्रेडिंग कर सकता है।

हमारे पिछले पोस्ट में हमने भारत के मशहूर ऑनलाइन स्टॉक ब्रोकर के बारे में बताया था। आप ऑनलाइन ट्रेडिंग करने के लिए उनके साथ अपना ट्रेडिंग अकाउंट और डीमैट अकाउंट खोल सकते हैं।

यहां नीचे हमने भारत के मशहूर स्टॉक ब्रोकर के अकाउंट ओपनिंग के लिंक दिए हैं आप इनमे से किसी पर भी क्लिक करके अपना अकाउंट खोल सकते हैं:

भारत के मशहूर स्टॉक ब्रोकर:

स्टॉक मार्केट ट्रेडर्स को इस बात से भी राहत मिली है कि उनको शेयर खरीदने के लिए ऑनलाइन सिस्टम में कम पैसा खर्च करना पड़ता है ऑफलाइन की तुलना में।

अगर किसी ट्रेडर ने ऑनलाइन शेयर खरीदने हैं तो सबसे पहले उसको अपना एक डीमैट अकाउंट खुलवाना होगा। डीमैट अकाउंट स्टॉक ब्रोकर के जरिए खुलता है तो इसलिए हर एक ट्रेडर को अपना डीमैट अकाउंट खुलवाने के लिए ब्रोकर को ढूंढना जरूरी होता है।

आज के डिजिटल दुनिया के समय में डिमैट अकाउंट घर से ही खोला जा सकता है। हमारे पिछले पोस्ट में हमने जाना था कि भारत के मशहूर stock brokers कौन से हैं। डिमैट अकाउंट ट्रेडिंग अकाउंट खोलने के लिए ज्यादा समय नहीं लगता है। इसमें सिर्फ 15 मिनट का समय लगता है।

आपका फॉर्म फिल हो जाता है और 24-48 घंटे के बाद आपका ट्रेडिंग और डिमैट अकाउंट तैयार हो जाता है। उसके बाद आप आसानी से ट्रेडिंग कर पाते हैं।

अगर आप अपना डिमैट अकाउंट किसी ऑफलाइन स्टॉक ब्रोकर के साथ खोल रहे हैं तो ध्यान रखें कि ब्रोकर आपकी जरूरत के मुताबिक होना चाहिए। एक अच्छा ब्रोकर एक मशहूर कंपनी या ऑनलाइन एजेंसी से संबंध रखने वाला होना चाहिए। जिसकी स्टॉक मार्केट में अच्छी तरह से जान पहचान और उसकी वैल्यू हो।

अच्छी कंपनी के ब्रोकर रिसर्च, निवेश, उत्पाद, वित्तीय सलाह इत्यादि कई सेवाएं ग्राहकों को देते हैं। उसी के अनुसार शुल्क लेते हैं। हर एक ब्रोकर को SEBI में रजिस्टर होना लाजमी है तो इसलिए हर एक ट्रेडर को बड़ी सावधानी के साथ अपने ब्रोकर का चुनाव करना चाहिए।

कोई भी ट्रेडर डीमैट अकाउंट के बिना शेयर बेच या खरीद नहीं सकता है। ब्रोकर के जरिए डिमैट अकाउंट खुलवा लेने के बाद आप अपने डिमैट अकाउंट में शेयर खरीद और बेच सकते हैं। जब आप शेयर खरीद लेंगे।

कैसे ऑनलाइन शेयर खरीदे?

  • ट्रेडर को डीमैट अकाउंट में लॉगइन करना होगा।
  • जिस कंपनी के शेयर खरीदने हैं उस कंपनी का नाम खोजें।
  • उस कंपनी के नाम का चुनाव करने के बाद ट्रेडर को उस कंपनी के शेयर की जानकारी और इसके साथ ही खरीदने और बेचने दोनों का ऑप्शन मिल जाएगा।
  • इस प्रक्रिया के बाद ट्रेडर के सामने कुछ विकल्प आएंगे जैसे कि स्टॉक या शेयर खरीदने की अवधि, शेयर का मूल्य या ट्रेडर जिस मूल्य पर खरीदना चाहता है, और शेयर की मात्रा इत्यादि।
  • इसी प्रकार शेयर बेचने से पहले सेलिंग प्राइस सामने आता है। जहां ट्रेडर को शेयर के फायदे और नुकसान के बारे में पूरी जानकारी मिलती है।

अगर कोई नया ट्रेडर शेयर मार्केट में शेयर खरीदना और बेचना चाहता है तो उसको कम रिस्क के साथ शेयर खरीदने और बेचने चाहिए जैसे कि 5000 से 10000 के बीच ही। नए ट्रेडर को शेयर मार्केट में लंबे समय के लिए ही शेयर को खरीदना।

ऐसा हमने आपको इसलिए बताया है क्योंकि विद्वानों का मानना है कि लंबी अवधि में शेयरों में होने वाले नुकसान का जोखिम कम होता है। जैसे ही आपका तजुर्बा होता जाएगा शेयर मार्केट में अपने तजुर्बे के साथ साथ ही आप इंट्राडे ट्रेडिंग भी करना शुरू कर सकते हैं।

शॉर्ट टर्म के लिए शेयर कैसे खरीदें?

शॉर्ट टर्म शेयर ट्रेडर किसी कंपनी के परिणामों या उसके अच्छे समाचारों को ध्यान में रखते हुए केवल तकनीकी विश्लेषण के आधार पर ही खरीदता है। आमतौर पर यह निवेश कुछ मिनटों, घंटों, या दिनों के भीतर बंद हो जाते हैं।

शॉर्ट टर्म ट्रेडिंग स्ट्रेटजी में निवेशक टेक्निकल एनालिसिस के आधार पर या किसी खबर के आधार पर कुछ समय के लिए कंपनी के शेयर खरीदकर होल्ड करके रखता है। और निश्चित लाभ प्राप्त होने पर उनको बेच देता है।

कैसे लॉन्ग टर्म के लिए शेयर कैसे खरीदें?

हर एक ट्रेडर किसी कंपनी के लंबे समय तक शेयर खरीदने के लिए उस कंपनी के शेयरों के मौलिक विश्लेषण या उस विशेष क्षेत्र के भविष्य के आधार पर ही लॉन्ग टर्म के लिए शेयर खरीदता है। इस प्रकार के निवेश आमतौर पर एक वर्ष से अधिक समय के लिए भी बने रह सकते हैं और कुछ वर्षों के बाद बंद भी किए जा सकते हैं।

क्या बिना स्टॉक ब्रोकर कि हम शेयर कर सकते हैं?

हम आपको यह जानकारी देंगे कि बिना ब्रोकर के भारत में ऑनलाइन शेयर कैसे खरीदे जा सकते हैं। यदि एक ट्रेडर खुदरा निवेशक है तो वह खुद के लिए डिपॉजिटरी पार्टिसिपेंट बन सकता है। और इसके लिए वह बिना ब्रोकरो के भी खुद के लिए शेयर खरीद सकता है। पर लेकिन यह काम वह सिर्फ अपने खुद के लिए ही कर सकता है दूसरों के लिए नहीं।

IPO (initial public offering) क्या है?

जब कोई कंपनी शुरू होती है प्रमोटर फंड के साथ तब वह फाउंडर ,फैमिली और फ्रेंड्स से पैसा लेना पड़ता है। जब यह कंपनी विकास की तरफ जाती है तो इसमें एंजेल इन्वेस्टर पैसे डालता है। कंपनी के थोड़ा और आगे बढ़ने पर इसमें वेंचर कैपिटल और प्राइवेट इक्विटी पैसा डालते हैं।

जब कंपनी अपनी विकास की चरम सीमा पर होती है तो यह आईपीओ में शामिल हो जाती है। आईपीओ के जरिए बीएसई और एनएसई स्टॉक एक्सचेंज में कंपनी लिस्टेड हो जाती है। आईपीओ में अलग-अलग तरह के इन्वेस्टर निवेश करते हैं जैसे कि इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर और non-institutional इन्वेस्टर। अगर किसी कंपनी को अपने लिए पैसा बढ़ाना है तो इसके लिए कंपनी के पास आईपीओ का बेहतर विकल्प होता हैं।

अगर कोई कंपनी अपने कारोबार का विस्तार करना चाहती है तो उसको ज्यादा फंड्स की जरूरत होती है। अगर कंपनी के ऊपर कोई उधार या लायबिलिटी या लोन है तो इनको खत्म करने के लिए और पुराने इन्वेस्टर जो कि कंपनी को छोड़कर जाना चाहते हैं इन सभी कामो के लिए जो हमने ऊपर पड़े हैं इसके लिए कंपनी को आईपीओ की जरूरत पड़ती है।

आईपीओ की प्रक्रिया

अगर कोई कंपनी पब्लिक इश्यू लेकर आना चाहती है तो कंपनी का सबसे पहला काम होता है किसी इन्वेस्टमेंट बैंक का चुनाव करना। इन्वेस्टमेंट बैंक को मर्चेंट बैंक भी कहा जाता है। भारत में बहुत सारे इन्वेस्टमेंट बैंक हैं जैसे कि एचडीएफसी, एसबीआई, आईसीआईसीआई इत्यादि।

उसके बाद कंपनी के आयुक्त आईपीओ की घोषणा की जाती है और जिसमें इसमें इन्वेस्ट करने की अवधि और आईपीओ लॉन्च होने की तारीख बताई जाती है। एक बार आईपीओ प्रक्रिया पूरी हो जाने के बाद कंपनी स्टॉक एक्सचेंज में लिस्ट हो जाती है और उसके शेयर की ट्रेडिंग शुरू हो जाती है।

अगर कोई अच्छी कंपनी आईपीओ लॉन्च करती है तो उसके शेयर आईपीओ के द्वारा खरीदने में बहुत ज्यादा लाभ प्राप्त हो सकता है।