भारतीय स्टॉक मार्केट में निवेश के लिए स्टॉक का चुनाव अत्यंत महत्वपूर्ण होता है क्योंकि यदि स्टॉक का चुनाव उचित होगा तभी निवेशक लाभान्वित होंगे अन्यथा नहीं। स्टॉक मार्केट में केवल उन्हीं निवेशकों को लाभ प्राप्त होता है जो संपूर्ण विश्लेषण के आधार पर ही निवेश करते हैं और ऐसे निवेशक केवल 10% ही है। स्टॉक मार्केट में उन निवेशकों को जोखिम का सामना करना जो बिना विश्लेषण के निवेश करते हैं और शेयर मार्केट में ऐसे निवेशक लगभग 90% है। आज हम उन्हीं मौलिक पहलुओं की चर्चा करेंगे जिनके आधार पर हम स्टॉक का चुनाव करके अच्छे लाभ प्राप्त कर सकते हैं एवं जोखिम से बच सकते हैं। तो चलिए जानते हैं कि शेयर कैसे चुने (share kaise chune)।
ज्यादातर लोग शेयर बाजार में नुकसान करते हैं क्योंकि वह दिमागी मेहनत किए बिना ही अपना पैसा लगाकर मुनाफा कमाना चाहते है। लेकिन share market में वही लोग मुनाफा कमा सकते हैं जो पहले कंपनी पर पूरी रिसर्च करते हैं और उसके बाद ही निवेश करते हैं।
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भारत का मशहूर स्टॉक ब्रोकर जीरोधा सबसे सुरक्षित स्टॉक ब्रोकर माना जाता है। यह आपको डिलीवरी ट्रेडिंग और इंट्राडे ट्रेडिंग दोनों के साथ-साथ म्युचुअल फंड इन्वेस्टमेंट, गोल्ड, गवर्नमेंट बॉन्ड में निवेश करने का अवसर प्रदान करता है।
बेस्ट शेयर कैसे चुने - Best Share Kaise Chune
सबसे अच्छा शेयर चुनने के लिए आपको इन पहलुओं पर जरूर ध्यान देना चाहिए:
कंपनी: किसी कंपनी के आधार पर ही निवेशकों को निवेश के बारे में विचार विमर्श करना चाहिए। अर्थात सर्वप्रथम कंपनी के आधार को देखना चाहिए तथा उसके बाद अन्य पहलुओं पर ध्यान देना चाहिए। क्योंकि यदि किसी कंपनी की आधार सुदृढ़ नहीं होगा तो अन्य पहलुओं पर विचार विमर्श करना निरर्थक साबित होगा।
कंपनी की निष्पक्षता (Transparency in Company): किसी कंपनी की निष्पक्षता के आधार पर निवेशकों द्वारा किसी कंपनी में निवेश के बारे में विचार विमर्श किया जाना चाहिए। क्योंकि जो कंपनी अपने अच्छे दौर में बिना किसी हेरफेर के अपने निवेशकों को समय दर समय डिविडेंड प्रदान करती है और अपने बुरे दौर में निवेशकों के समक्ष आकर कंपनी की सही परिस्थिति से अवगत कराती है केवल वह कंपनी ही निवेशकों के बीच विश्वास प्राप्त कर सकती है।
कंपनी का उच्च स्तरीय प्रबंधन (Management of Company): किसी कंपनी के उच्च स्तरीय प्रबंधन के कार्यकाल के आधार पर भी निवेशकों द्वारा उस कंपनी में निवेश के बारे में विचार विमर्श किया जाना चाहिए। जिन कंपनियों का दीर्घकालिक उच्च स्तरीय प्रबंधन कंपनी को निरंतर प्रगति एवं स्थिरता प्रधान करता है वे कंपनियां निवेशकों को अच्छे रिटर्न प्रदान करने में सफल सिद्ध होती हैं। जिन कंपनियों के उच्च स्तरीय प्रबंधन में निरंतर परिवर्तन के बावजूद कंपनी को प्रगति एवं स्थिरता नहीं मिलती है वे कंपनियां निवेशकों को अच्छे रिटर्न प्रदान करने में असफल सिद्ध होती हैं।
कंपनी द्वारा बायबैक (Buy Back): किसी कंपनी द्वारा बायबैक के आधार पर निवेशकों द्वारा उस कंपनी में निवेश के बारे में विचार विमर्श किया जाना चाहिए क्योंकि बायबैक के द्वारा कंपनी मे प्रमोटर की होल्डिंग में वृद्धि होती है। बायबैक निवेशक के लिए अधिकतर फायदेमंद साबित होता है। परंतु यदि कंपनी द्वारा बायबैक कम कीमत पर किया जाए तो यह निवेशक के लिए जोखिम पूर्ण साबित होता है। इसके विपरीत बायबैक कंपनी के लिए सदैव फायदेमंद ही साबित होता है। बायबैक के द्वारा शेयर मार्केट में उस कंपनी की प्रति शेयर आय एवं प्राइस टू अर्निंग रेश्यो में वृद्धि होती है।
कंपनी की प्रतिष्ठा (Reputation of Company): किसी कंपनी की प्रतिष्ठा के आधार पर निवेशक द्वारा किसी कंपनी में निवेश के बारे में विचार विमर्श किया जाना चाहिए, परंतु इसका यह अर्थ नहीं है कि निवेशक को केवल कंपनी की प्रतिष्ठा की ओर ही ध्यान देना चाहिए। क्योंकि अनेकों बार प्रतिष्ठित कंपनियां भी निवेशकों की उम्मीदों के विपरीत प्रदर्शन करती है तथा निवेशकों के लिए जोखिम पूर्ण सिद्ध होती है। इसलिए यह अति महत्वपूर्ण है कि किसी भी कंपनी में निवेश करने से पूर्व उसका संपूर्ण विश्लेषण करना चाहिए।
पोर्टफोलियो का विविधीकरण (Portfolio Diversification): पोर्टफोलियो के विविधीकरण का अर्थ होता है निवेशक की पूंजी का किसी एक वित्तीय साधन में निवेश के स्थान पर अनेकों वित्तीय साधनों में निवेश करना। पोर्टफोलियो के विविधीकरण के द्वारा निवेशक सीमित जोखिम के साथ उचित रिटर्न प्राप्त कर सकते हैं एवं शेयर मार्केट की अस्थिरता से भी बचे रहते हैं। कभी भी साथ अपना सारा पैसा किसी एक कंपनी में नहीं लगाना चाहिए।
वित्तीय अनुपात (Financial Ratio): निवेशकों के लिए किसी कंपनी का मूल्यांकन करना एक कठिन कार्य है। इसलिए वे निम्न वित्तीय अनुपात के आधार पर सरलता पूर्वक किसी भी कंपनी का मूल्यांकन कर सकते हैं जो इस प्रकार है:
अंरनिंग पर शेयर (EPS): अंरनिंग पर शेयर कुल लाभ का वह भाग होता है जो प्रत्येक शेयर पर दर्शाया जाता है। अंरनिंग पर शेयर किसी कंपनी के आर्थिक विश्लेषण के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके आधार पर ही अन्य वित्तीय अनुपातों की गणना की जाती है। किसी भी कंपनी कि बढ़ती हुई इपीएस यह दर्शाती है कि वह कंपनी निरंतर अच्छे लाभ प्राप्त कर रही है एवं किसी भी कंपनी की गिरती हुई ईपीएस यह दर्शाती है कि वह कंपनी निरंतर मंदी के दौर से गुजर रही है।
ईपीएस = कुल लाभ/जारी किए गए शेयर की कुल संख्या
किसी भी कंपनी में निवेश करने से पूर्व हमें उस कंपनी का पिछले 5 वर्षों का ईपीएस देखना चाहिए।
प्राइस टू अर्निंग रेश्यो( Price to Earning Ratio): प्राइस टू अर्निंग रेश्यो का अर्थ यह ज्ञात करना होता है कि किसी निवेशक द्वारा ₹1 कमाने के लिए कितनी राशि का निवेश किया जा रहा है। यदि किसी कंपनी का पीई अनुपात अधिक है तो इसका यह अर्थ है कि निवेशक द्वारा ₹1 कमाने के लिए अत्यधिक राशि का निवेश किया जा रहा है और यदि किसी कंपनी का पी ई अनुपात कम है तो इसका यह अर्थ है कि निवेशक द्वारा ₹1 कमाने के लिए कम राशि का निवेश किया जा रहा है।
पी ई अनुपात= वर्तमान मूल्य प्रति शेयर/लाभ प्रति शेयर
प्राइस टू बुक रेश्यो (Price to Book Ratio): किसी कंपनी के शेयर के वर्तमान मूल्य को मार्केट प्राइस कहा जाता है एवं कुल एसेट्स मूल्य को बुक प्राइस कहा जाता है। प्राइस बुक रेश्यो का अर्थ यह ज्ञात करना होता है कि किसी कंपनी के शेयर की मार्केट वैल्यू उस शेयर की बुक वैल्यू से कितनी अधिक या कितनी कम है। यदि किसी कंपनी के पी बी अनुपात का मान 1 से कम आता है तो उसका अर्थ यह होता है कि उस कंपनी में निवेश करना जोखिम पूर्ण हो सकता है एवं यदि किसी कंपनी के पी बी अनुपात का मान एक से अधिक आता है तो उसका अर्थ यह होता है उस कंपनी में निवेश करना लाभप्रद हो सकता है।
पी बी अनुपात = मार्केट वैल्यू प्रति शेयर/बुक वैल्यू प्रति शेयर
बुक वैल्यू प्रति शेयर= कुल ऐसेट - कुल लायबिलिटीज/मार्केट में जारी किए गए शेयर की संख्या
डेब्ट इक्विटी रेश्यो (Debt Equity Ratio): डेब्ट का अर्थ होता है किसी कंपनी के सभी प्रकार के अल्पकालीन एवं दीर्घकालीन ऋण। इक्विटी का अर्थ होता है किसी कंपनी को सभी शेयरधारकों से प्राप्त पूंजी। डेब्ट इक्विटी रेश्यो किसी कंपनी की स्थिरता एवं विकास के लिए अतिरिक्त पूंजी एकत्रित करने की क्षमता को दर्शाता है। यदि किसी कंपनी का डी इ अनुपात का मान एक से अधिक हो तो इसका यह अर्थ होता है कि उस कंपनी पर ऋण का अत्यधिक भार है तथा इसमें निवेश करना अत्यंत जोखिम पूर्ण हो सकता है। इसके विपरीत यदि किसी कंपनी का डी इ अनुपात का मान 1 से कम हो तो इसका यह अर्थ है कि उस कंपनी पर ऋण का अपेक्षाकृत कम भार है तथा इसमें निवेश करना लाभप्रद हो सकता है।
डी इ अनुपात = कुल अल्पकालीन एवं दीर्घकालीन ऋण/शेयरधारकों द्वारा निवेश की गई कुल पूंजी
रिटर्न ऑन इक्विटी (Return on Equity): ROI प्रमुख वित्तीय अनुपात है। रिटर्न ऑन इक्विटी का अर्थ होता है शेयरधारकों द्वारा निवेश की गई पूंजी पर प्राप्त होने वाले रिटर्न। यदि किसी कंपनी की पिछले 5 वर्षों की रिटर्न ऑन इक्विटी 15 से 20% के बीच है तो वह निवेश के लिए उचित समय आती है इसके विपरीत यदि किसी कंपनी की रिटर्न ऑन इक्विटी 15% से कम हो तो वह निवेश के लिए उचित नहीं समझी जाती है।
आर ओ ई= कुल लाभ/शेयरहोल्डर्स इक्विटी X 100
कुल लाभ= कर से पहले की आय - आयकर
नोट: यदि कोई कंपनी अत्यधिक ऋण द्वारा अपनी रिटर्न ऑन इक्विटी को बढ़ाती है तो यह अनुचित समझा जाता है एवं इसके विपरीत यदि कोई कंपनी न्यूनतम ऋण एवं अधिकतम इक्विटी के उपयोग द्वारा रिटर्न ऑन इक्विटी को बढ़ाती है तो यह अत्यंत उचित समझा जाता है।
रिटर्न ऑन कैपिटल एंप्लॉयड (Return on Capital Employed): रिटर्न ऑन कैपिटल एंप्लॉयड एक अनिवार्य वित्तीय अनुपात है। रिटर्न ऑन कैपिटल एंप्लॉयड का अर्थ होता है शेयरधारकों द्वारा एवं कंपनी के मालिक द्वारा निवेश की गई कुल पूंजी पर प्राप्त होने वाले रिटर्न। यदि किसी कंपनी की पिछले 5 वर्षों की रिटर्न ऑन कैपिटल एंप्लॉयड 15% से अधिक हो तो वह निवेश के लिए उचित समझी जाती है तथा यदि किसी कंपनी की पिछले 5 वर्षों की रिटर्न ऑन कैपिटल एंप्लॉयड 15% से कम हो तो निवेश के लिए उचित नहीं समझी जाती है।
आर ओ सी इ = लाभ/ कैपिटल एंप्लॉयड
लाभ = सभी ब्याज एवं कर सहित
कैपिटल एंप्लॉयड= नॉन करंट असेट्स एवं कार्यशील पूंजी
अथवा
कैपिटल एंप्लॉयड = डिवेंचर, लंबी अवधि वाले ऋण एवं शेयरधारक निधि
प्राइस टू सेल्स रेश्यो: प्राइस टू सेल्स अनुपात यह दर्शाता है कि किसी कंपनी द्वारा प्रत्येक शेयर पर उत्पन्न की गई बिक्री के एवज में उस शेयर को शेयर मार्केट में कितना मूल्य मिल रहा है। यदि किसी कंपनी के प्राइस टू सेल रेश्यो का मान एक से कम हो तो यह निवेश की दृष्टि से सर्वोत्तम समझा जाता है और यदि कंपनी के प्राइस टू सेल रेश्यो का मान एक और दो के बीच हो तो भी यह निवेश की दृष्टि से अच्छा समझा जाता है।
पीएस अनुपात: मार्केट प्राइस प्रति शेयर/सेल्स प्रति शेयर
करंट रेश्यो (Current Ratio): करंट रेश्यो जानने से पहले हमें करंट ऐसेट तथा करंट लायबिलिटीज के बारे में जानना होगा। करंट ऐसेट वे ऐसेट होते हैं जो 1 वर्ष के भीतर ही नकदी में परिवर्तित किए जा सकते हैं एवं करंट लायबिलिटीज वे लायबिलिटीज होती है जिनका 1 वर्ष के भीतर ही भुगतान किया जा सकता है। करंट रेश्यो यह दर्शाता है कोई कंपनी अपने वर्तमान ऐसेट का उपयोग करते हुए कितनी क्षमता पूर्वक अपनी सभी वर्तमान लायबिलिटीज का भुगतान कर सकती है। किसी भी कंपनी के करंट रेश्यो का मान एक से अधिक हो तो यह निवेश के दृष्टिकोण से सर्वोत्तम माना जाता है।
करंट रेश्यो: करंट ऐसेट/करंट लायबिलिटीज
डिविडेंड (Dividend): डिविडेंड का अर्थ होता है लाभांश अर्थात नेट प्रॉफिट का वह भाग जो शेयरधारकों को उनकी शेयरों की संख्या के आधार पर दिया जाता है। यदि कोई कंपनी निरंतर डिविडेंड प्रदान कर रही है तो इसका यह अर्थ होता है कि वह कंपनी प्रगति की ओर अग्रसर है। यदि हमें किसी कंपनी की सही आर्थिक स्थिति जाननी है तो हमें उस कंपनी द्वारा दिए गए पिछले 5 वर्षों के डिविडेंड का विश्लेषण करना चाहिए।
उपरोक्त पहलुओं के अनुसंधान के आधार पर निवेशक उन कंपनियों का चुनाव कर सकते हैं जिनमें वे निवेश के इच्छुक हैं और अच्छे शेयर चुन सकते हैं।