14 ट्रेडिंग रणनीतियां जो हर ट्रेंडर को पता होनी चाहिए

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 इंट्राडे ट्रेडिंग की शुरुआत करने से पूर्व निवेशक को उससे संबंधित वित्तीय साधनों एवं उनकी विशेषताओं की जानकारी होनी चाहिए क्योंकि इनके द्वारा ही अच्छे रिटर्न प्राप्त किए जा सकते हैं। सभी ट्रेडिंग रणनीतियों की विशेष जानकारी होनी चाहिए इनके द्वारा ही जोखिम से बचा जा सकता है। सभी प्रकार के फायदे एवं नुकसान की भी विशेष जानकारी होनी चाहिए जिनको ध्यान में रखते हुए तकनीको एवं रणनीतियों का उपयोग किया जा सकता है। आज के इस पोस्ट में हम देखेंगे 14 इंट्राडे ट्रेडिंग स्ट्रेटजी (intraday trading strategy in Hindi) जो आप अपनी ट्रेडिंग में उपयोग कर सकते हैं शेयर मार्केट में लाभ कमा सकते हैं।

इंट्राडे का अर्थ है 'एक दैनिक सत्र' इस प्रकार इंट्राडे ट्रेडिंग का अर्थ है 'एक दैनिक सत्र में संपूर्ण की जाने वाली ट्रेडिंग'। इसको डे ट्रेडिंग भी कहा जाता है। वे ट्रेडर्स जो ट्रेडिंग को एक दैनिक सत्र में संपूर्ण करते हैं उन्हें इंट्राडे ट्रेडर्स कहा जाता है। इंट्राडे ट्रेडर्स अधिक लिवरेज, दैनिक ट्रेडिंग योजनाएं बनाकर एवं वित्तीय साधनों के मूल्यों में होने वाले छोटे-छोटे उतार चढ़ाव के द्वारा लाभ अर्जित करते हैं। वे महत्वपूर्ण एवं आकस्मिक गतिविधियां जो मार्केट को प्रभावित करती है उनके द्वारा इंट्राडे ट्रेडर्स लाभ अर्जित करते हैं।

ऑनलाइन ट्रेडिंग विभिन्न वित्तीय साधनों की ट्रेडिंग प्रदान करता है उदाहरण के तौर पर बॉन्ड फ्यूचर, कमोडिटी फ्यूचर, एक्सचेंज ट्रेडेड फंड्स, इंडेक्स फ्यूचर, फॉरेक्स इंस्ट्रूमेंट, स्टॉक फ्यूचर, स्टॉक एंड इंडेक्स ऑप्शन आदि।

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14 ट्रेडिंग रणनीतियां - 14 Intraday trading strategy in Hindi

यहां 14 इंट्राडे ट्रेडिंग तरीकों दिए गए हैं जो आपको जरूर पता होना चाहिए:

  1. एल्गोरिथमिक ट्रेडिंग: एल्गोरिथमिक ट्रेडिंग (Algorithmic Trading) उस ट्रेडिंग को कहा जाता है जिसमें गणितीय उपकरणों के उपयोग द्वारा शेयर की खरीद-फरोख्त की जाती है। एल्गोरिथमिक ट्रेडिंग के कारण शेयर मार्केट में अत्यधिक प्रतियोगिता एवं अल्प लाभ देखने को मिलते हैं। इसका उपयोग सभी वित्तीय संस्थाओं द्वारा किया जाता है उदाहरण के तौर पर बैंक, ब्रोकर, विशेषज्ञ एवं इंट्राडे ट्रेडर्स। यह ट्रेडिंग का एक बिल्कुल नवीनतम तरीका है और यह अभी इतना प्रचलित नहीं हुआ है। लेकिन आने वाले दिनों में यह सबसे ज्यादा प्रयोग होने वाला ट्रेडिंग बन जाएगा।
  2. बुल फ्लैग ट्रेडिंग: बुल फ्लैग ट्रेडिंग स्ट्रेटजी (Bull Flag Strategy) उस ट्रेडिंग को कहा जाता है जिसमें इंट्राडे ट्रेडर द्वारा किसी एक निश्चित स्टॉक का पिछले कुछ दिनों का मूल्य विश्लेषण किया जाता है एवं उसके आधार पर ट्रेडिंग की जाती है। सर्वप्रथम वह स्टॉक अपने मूल्य की चरम सीमा पर पहुंचता है तथा उसके पश्चात गिरावट दिखाते हुए एक फ्लैग का आकार लेता है। ग्राफ में दर्शाए गए हाई एवं लो एंड के आधार पर ट्रेडर्स द्वारा ट्रेडिंग की जाती है एवं लाभ अर्जित किया जाता है।
  3. ब्रेकआउट ट्रेडिंग: ब्रेकआउट ट्रेडिंग उस ट्रेडिंग को कहा जाता है जिसमें ट्रेडर्स द्वारा शेयर की ट्रेडिंग, उनके निश्चित अधिकतम एवं न्यूनतम मूल्य के आधार पर की जाती है। यदि शेयर के निश्चित न्यूनतम मूल्य में गिरावट आती है तो उस स्थिति में इंट्राडे ट्रेडर्स शेयर बेचते हैं और यदि शेयर के निश्चित अधिकतम मूल्य में उछाल आता है उस स्थिति में इंट्राडे ट्रेडर्स शेयर खरीदते हैं। इस प्रकार की ट्रेडिंग समय आधारित होती है क्योंकि ट्रेडर को शेयर मार्केट के मूल्य में अपेक्षित गिरावट या उछाल के लिए प्रतीक्षा करनी पड़ती है।
  4. सीएफडी: सीएफडी का अर्थ होता है “कॉन्ट्रैक्ट फॉर डिफरेंस”। इसके द्वारा ट्रेडिंग अति सरल हो जाती है। इस उपकरण के द्वारा किसी विशेष संपत्ति के शुरुआती और समाप्ति मूल्य के अंतर पर अनुबंध बनाया जाता है।
  5. गैप एंड गो ट्रेडिंग: गैप एंड गो ट्रेडिंग उस ट्रेडिंग को कहा जाता है जिसमें अनेकों बार नए दैनिक सत्र की शुरुआत में ट्रेडिंग के लिए पर्याप्त स्टॉक उपलब्ध नहीं होते हैं। इस स्थिति में यदि स्टॉक के मूल्य मे गिरावट आती है तो उसे “गैप डाउन” कहा जाता है और यदि स्टॉक के मूल्य में उछाल आता है तो उसे “गैप अप” कहा जाता है। इस गैप के मुख्य कारण न्यूज़ एवं इवेंट्स हो सकते हैं। इस गैप के उपयोग द्वारा ही इंट्राडे ट्रेडर्स बिना जोखिम उठाए थोड़ा बहुत लाभ कमा सकते हैं।
  6. मार्केट एवरेज क्रॉसओवर: मार्केट एवरेज क्रॉसओवर वह ट्रेडिंग है जिसके अंतर्गत ट्रेडर्स स्टॉक को चुनते हैं जो निरंतर अपने औसत मूल्य के आसपास उतार चढ़ाव दर्शाते रहते हैं। यदि स्टॉक के मूल्य में गिरावट आए तो उसे डाउनट्रेंड कहा जाता है और यदि स्टॉक के मूल्य में उछाल आए तो उसे अपट्रेंड कहा जाता है। यह रणनीति बाकी सभी रणनीतियों से श्रेष्ठ मानी जाती है।
  7. कांट्रेरियन निवेश: कांट्रेरियन निवेश वह निवेश होता है जिसमें निवेशक इस दृष्टिकोण से स्टॉक की खरीद-फरोख्त करता है कि वर्तमान में चल रहे ट्रेंड में भविष्य में निश्चित ही बदलाव आएगा। इस ट्रेडिंग में यह मान लिया जाता है कि निवेशकों द्वारा खरीदे गए स्टॉक के मूल्यों में यदि वृद्धि हो रही है तो भविष्य में निश्चित ही गिरावट भी आएगी और यदि स्टॉक के मूल्य में गिरावट आ रही है तो भविष्य में निश्चित ही वृद्धि भी होगी। इस प्रकार ट्रेडर्स कांट्रेरियन निवेश द्वारा लाभ अर्जित करते हैं।
  8. मोमेंटम ट्रेडिंग: मोमेंटम ट्रेडिंग (Momentum Trading) उस ट्रेडिंग को कहा जाता है जिसमें ट्रेडर्स द्वारा उन शेयर को चुना जाता है जिनके मूल्य में एक ही दिशा में बढ़ोतरी होती है (निरंतर उछाल या निरंतर गिरावट) और वह भी अत्यधिक संख्या में (हाई वॉल्यूम)। स्टॉक मार्केट में 30 प्रतिशत से अधिक स्टॉक ऐसे होते हैं जिनमें निरंतर उतार-चढ़ाव आता रहता है। इस प्रकार की रणनीति दैनिक सत्र के शुरुआत में फायदेमंद होती है क्योंकि उस दौरान शेयर की खरीद-फरोख्त अधिकतम होती है।
  9. पुलबैक ट्रेडिंग: पुलबैक ट्रेडिंग उस ट्रेडिंग को कहा जाता है जिसमें ट्रेडर्स द्वारा स्टॉक के मूल्य में आने वाले छोटे-छोटे पुल बैक में निवेश किया जाता है और लाभ अर्जित किया जाता है। इस ट्रेडिंग में ट्रेडर्स दो प्रकार से लाभ अर्जित कर सकते हैं। जब किसी स्टॉक का मूल्य निरंतर बढ़ रहा हो परंतु अचानक उसमें पुल बैक की स्थिति उत्पन्न हो जाए तो ट्रेडर्स स्टॉक बेचकर लाभ अर्जित करते हैं। जब किसी स्टॉक का मूल्य निरंतर घट रहा हो परंतु अचानक उसमें पुलबैक की स्थिति उत्पन्न हो जाए तो ट्रेडर्स उस स्टॉक बेचते हैं एवं पुल बैक की स्थिति समाप्त हो जाने पर उसी स्टॉक को फिर से खरीद कर लाभ अर्जित करते हैं।
  10. पाईवेट प्वाइंट स्टडीज: पाईवेट प्वाइंट स्टडीज खास तौर पर फॉरेन एक्सचेंज मार्केट के लिए उपयोगी सिद्ध होती हैं। यह सपोर्ट तथा इंडिकेटर को दर्शाता है। यह एक औसत संकेतक है। उसके उपयोग द्वारा ट्रेडर्स एंट्री, स्टॉप और लाभ को सुनिश्चित कर सकते हैं।
  11. रिवर्सल ट्रेडिंग: रिवर्सल ट्रेडिंग उस ट्रेडिंग को कहा जाता है जिसमें इंट्राडे ट्रेडर्स शेयर पर नजर रखते हैं जिन के मूल्य में अत्यंत गिरावट या अत्यंत उछाल दिखाई देता है। इन शेयर के मूल्य में विपरीत परिवर्तन आने के साथ ही इंट्राडे ट्रेडर्स लॉन्ग तथा शार्ट पोजीशन लेते हैं एवं लाभ अर्जित करते हैं। इस प्रकार की ट्रेडिंग के लिए ट्रेडर का अत्यंत अनुभवी होना आवश्यक है।
  12. स्केलपिंग: स्केलपिंग उस ट्रेडिंग को कहा जाता है जिसमें एक दैनिक सत्र में इंट्राडे ट्रेडर द्वारा अनेकों बार खरीद-फरोख्त की जाती है एवं लाभ अर्जित किया जाता है। इस प्रकार की ट्रेडिंग के लिए संपत्ति का लिक्विड होना अनिवार्य है। यदि संपत्ति लिक्विड हो तो एंटर या एग्जिट करने पर इंट्राडे ट्रेडर अच्छे रिटर्न प्राप्त करते हैं।
  13. ट्रेंड का अनुसरण करना: ट्रेंड का अनुसरण करने का अर्थ है स्टॉक के मूल्य का अनुसरण करना। इस प्रकार की ट्रेडिंग करने वाले ट्रेडर्स दीर्घावधि में होने वाले मूल्य में परिवर्तन द्वारा लाभ अर्जित करते हैं और यह तभी संभव होता है जब उस निश्चित स्टॉक का मूल्य एक दीर्घावधि के दौरान एक ही दिशा में अग्रसर होता है।
  14. रेंज ट्रेडिंग: रेंज ट्रेडिंग वह ट्रेडिंग होती है जिसमें ट्रेडर स्टॉक् को न्यूनतम मूल्य पर खरीदते हैं एवं अधिकतम मूल्य पर बेचते हैं तथा लाभ अर्जित करते हैं। यह ट्रेडिंग उस प्रकार के स्टॉक में की जाती है जो निरंतर अधिकतम मूल्य पर पहुंचकर न्यूनतम मूल्य पर आ जाते हैं, इसलिए इन्हें “ट्रेडिंग इन रेंज”भी कहा जाता है।

इंट्राडे ट्रेडिंग की विशेषताएं

डे ट्रेडिंग में उपयोग होने वाले वित्तीय साधनों में निम्न विशेषताएं होनी चाहिए:

  • उच्च ट्रेडिंग वॉल्यूम: वॉल्यूम का अर्थ यह मापना है की एक निश्चित स्टॉक की, एक निश्चित अवधि के दौरान कितनी बार खरीद-फरोख्त हुई है। किसी एक निश्चित स्टॉक के मूल्य में आने वाले भारी उतार-चढ़ाव उस स्टॉक के ट्रेडिंग वॉल्यूम का कारण बनते हैं।
  • उच्च परिवर्तनशीलता: इंट्राडे ट्रेडर्स द्वारा अधिक परिवर्तनशील शेयर चुने जाने चाहिए क्योंकि इसके द्वारा ही इंट्राडे ट्रेडर्स अनेकों बार ट्रेडिंग द्वारा लाभ अर्जित कर सकते हैं।
  • उच्च लिक्विडिटी: इंट्राडे ट्रेडर्स द्वारा अधिक लिक्विडिटी वाले शेयर चुने जाने चाहिए क्योंकि इसके द्वारा ही इंट्राडे ट्रेडर्स अधिकाधिक शेयर खरीद एवं बेच सकते हैं और लाभ अर्जित कर सकते हैं।
  • कम ट्रांजेक्शन शुल्क: इंट्राडे ट्रेडिंग में लगने वाले ट्रांजेक्शन शुल्क बहुत कम होने चाहिए क्योंकि ट्रांजेक्शन शुल्क जितने कम होंगे ट्रेडर्स उतने ही निश्चिंत होकर बड़े पैमाने पर ट्रेडिंग कर सकेंगे।
  • कार्यनीति: इंट्राडे ट्रेडर्स द्वारा शेयर मार्केट में सफल होने के लिए कार्य नीति का होना अति अनिवार्य है क्योंकि इसके द्वारा वे जान सकेंगे कि उन्हें कब निवेश करना है, कब बुक प्रॉफिट करना है तथा कब स्टॉप लॉस करना है।
  • लक्ष्य निर्धारण: ट्रेडर्स को बेचे जाने वाले शेयर के मूल्य को सुनिश्चित करना चाहिए क्योंकि इसके द्वारा वे जोखिम से बच सकते हैं एवं सुनिश्चित लाभ कमा सकते हैं।
  • विशेषज्ञ: प्रारंभ करने से पूर्व विशेषज्ञों की सलाह लेनी चाहिए एवं इसी आधार पर शेयर मार्केट में निवेश करना चाहिए।
  • शेयर बाजार की नवीनतम जानकारी: यह अति आवश्यक है कि इंट्राडे ट्रेडर के पास शेयर मार्केट की नवीनतम जानकारी होनी चाहिए। इंट्राडे ट्रेडर्स को यह भी देखना चाहिए कि शेयर मार्केट का झुकाव किस ओर है। ब्रोकर्स शेयर मार्केट संबंधित सभी जानकारियां प्रदान नहीं करते हैं इसलिए ट्रेडर्स को अन्य स्रोतों से भी जानकारी एकत्रित करनी चाहिए।
  • लीवरेज: इंट्राडे ट्रेडर्स के लिए लिवरेज अत्यंत महत्वपूर्ण है। लिवरेज द्वारा ट्रेडर्स उन सभी स्टाफ में निवेश कर सकते हैं जिनमें निवेश करने में वे और सक्षम होते हैं।

इंट्राडे ट्रेडिंग के फायदे

इंट्राडे ट्रेडिंग के फायदे निम्न प्रकार है:

  • जोखिम: इंट्राडे ट्रेडिंग में दैनिक सत्र के समाप्त होते ही ट्रेडर्स के लाभ एवं निवेश उनके बैंक अकाउंट में जमा हो जाते हैं एवं शेयर मार्केट में आने वाले उतार-चढ़ाव से बचे रहते हैं।
  • निरंतर आय का साधन: इंट्राडे ट्रेडिंग में अनुभवी एवं अच्छे कार्य नीति वाले ट्रेडर्स निरंतर लाभ अर्जित करते हैं एवं दैनिक सत्र के समाप्त होते ही इनके लाभ एवं निवेश इनके बैंक अकाउंट में जमा हो जाते हैं।
  • न्यूनतम मार्जिन ट्रेडिंग: इंट्राडे ट्रेडिंग में ट्रेडर्स बहुत कम राशि के साथ भी बड़े पैमाने पर स्टॉक की खरीद-फरोख्त कर सकते हैं। इसके लिए ब्रोकर द्वारा ट्रेडर्स को मार्जिन प्रदान किया जाता है। उदाहरण के तौर पर इंट्राडे ट्रेडिंग मार्जिन के उपयोग द्वारा ₹1000 खर्च करके ₹100000 के स्टॉक खरीदे जा सकते हैं।
  • शॉर्ट सेलिंग: इंट्राडे ट्रेडर्स शॉर्ट सेलिंग के द्वारा उचित लाभ अर्जित करते हैं। शॉर्ट सेलिंग का अर्थ होता है किसी ट्रेडर के द्वारा दैनिक सत्र की शुरुआत में स्टॉक को ऊंचे दाम पर बेचना एवं दैनिक सत्र के अंत से पहले उसी स्टाक को कम दामों पर खरीद लेना। इस प्रक्रिया द्वारा वह सरलता पूर्वक लाभ अर्जित करते रहते हैं तथा इस प्रक्रिया पर मार्केट के उतार-चढ़ाव का भी कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
  • सरल योजना: इंट्राडे ट्रेडर्स द्वारा शेयर मार्केट में सफल होने के लिए अच्छी रणनीति का होना अति अनिवार्य है और इसके लिए इंट्राडे ट्रेडर्स चार्ट आधारित नीतियों का उपयोग कर सकते हैं उदाहरण के तौर पर एल्गोरिथमिक ट्रेडिंग, बुल फ्लैग ट्रेडिंग, ब्रेकआउट ट्रेडिंग आदि।
  • इंट्राडे ट्रेडिंग के नुकसान
  • इंट्राडे ट्रेडिंग में सबसे ज्यादा अनुभव की जरूरत होती है। ज्यादातर नए निवेशक डे ट्रेडिंग से शुरुआत करते हैं और वह बहुत ही जल्दी अपने ट्रेडिंग अकाउंट को खाली करके शेयर मार्केट से दूर चले जाते हैं। शेयर मार्केट में डे ट्रेडिंग सबसे अंत में होनी चाहिए। एक बार जब ट्रेडर को अच्छी तरह शेयर मार्केट के बारे में पता चल जाता है तो उसके बाद ही उसको डे ट्रेडिंग में आना चाहिए।
  • लेकिन ज्यादातर ट्रेडर अपनी ट्रेडिंग की शुरुआत में ही इंट्राडे ट्रेडिंग शुरू कर देते हैं और जिसके परिणाम स्वरुप वह नुकसान ही झेलते हैं। इंट्राडे ट्रेडिंग, ट्रेडिंग में सबसे ज्यादा मुश्किल मानी जाती है। ज्यादातर ट्रेडर बिना स्टॉपलॉस के ही काम करते हैं जिसकी वजह से वह ज्यादा देर मार्केट में टिक नहीं पाते । 
  • एक नए ट्रेडर को कभी भी इंट्राडे से शुरुआत नहीं करनी चाहिए। उसको डिलीवरी ट्रेडिंग से शुरुआत करनी चाहिए।
  • इंट्राडे ट्रेडिंग के नुकसान निम्न प्रकार है:
  • प्रतिकूल स्थिति: इंट्राडे ट्रेडर्स के लिए शेयर मार्केट में कई बार प्रतिकूल स्थिति उत्पन्न हो जाती है जिसके कारण इंट्राडे ट्रेडर्स को जोखिम का सामना भी करना पड़ता सकता है।
  • आत्म संयम एवं व्यवहारिक: इंट्राडे ट्रेडिंग केवल उन ट्रेडर्स के लिए अनुकूल है जो प्रतिकूल स्थितियों में भी आत्मसंयमता एवं व्यावहारिकता बनाए रखते हैं ना कि उन ट्रेडर्स के लिए जो प्रतिकूल स्थितियों में बिना सोचे समझे, बिना मार्केट विश्लेषण किए गलत निर्णय लेते हैं एवं जोखिम उठाते हैं।
  • जोखिम पूर्ण: इंट्राडे ट्रेडिंग जोखिम से परिपूर्ण एवं अप्रत्याशित है इसलिए उन्हें उतना ही निवेश करना चाहिए जितना जोखिम वह सहन कर सकते हैं।
  • अनिश्चित उतार-चढ़ाव: इंट्राडे ट्रेडर्स अनिश्चित उतार-चढ़ाव से परिपूर्ण होने के कारण तात्कालिक लाभप्रद एवं जोखिम पूर्ण है।
  • शेयर मार्केट विशेषज्ञ: यदि इंट्राडे ट्रेडर बिना विशेषज्ञ की मदद या बिना चार्ट आधारित रणनीति तैयार किए ट्रेडिंग करते हैं तो यह उनके लिए अति जोखिम पूर्ण होता है।

उपरोक्त तथ्यों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि इंट्राडे ट्रेडिंग लाभप्रद होने के साथ अत्यंत जोखिम पूंजी है इसलिए इंटरनेट इसका उद्देश्य केवल लाभ अर्जित करना ही नहीं अपितु जोखिम को सीमित करना भी होता है। इंटरनेट के अपने अनुभव से सीखते हैं एवं जोखिम को सीमित करते हैं परंतु जोखिम से संपूर्ण रूप से मुक्त होना असंभव है क्योंकि शेयर मार्केट संपूर्ण रूप से आस्था के अधीन है।